Thursday, March 5, 2009

अटलजी को विश्लेषणात्मक पत्र 13 साल बाद यानी 19 मार्च 1998 को अटलजी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।

कुलदीप शर्मा नामक इस पत्रकार का दोष सिर्फ इतना ही रहा कि यह अखबार की कांग्रेस विचारधारा केे विपरीत भाजपा की विचारधारा से प्रभावित रहा था और चर्चा के दौरान इसका उल्लेख गलती से अखबार के प्रधान संपादक के सामने कर दिया। बस फिर क्या था, येनकेन प्र्रकारेण इसे निकाले जाने का दबाव बनाया जाने लगा और त्यागपत्र दे देने की सलाह दी जाने लगी। जब इस शख्स ने अपनी परेशानियों से अवगत कराया तो उसका स्थानांतर कर दिया गया। इसका पूरा विवरण कुलदीप द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए पत्र में है।यहां यह बताना गैरजरूरी नहीं होगा कि इस शख्स ने महज 24 साल की उम्र में वर्ष 1985 में इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की करारी शिकस्त के बाद तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अटलबिहारी वाजपेयी को पार्टी की ऐसी दुर्गति होने के विभिन्न कारण गिनाते हुए 19 मार्च 1985 को एक लंबा पत्र लिखा, जिसके बाद ही पार्टी ने गांधीवादी समाजवाद के अपने सिद्धांत से किनारा कर राम मंदिर का मुद्दा अपने एजेंडे में शामिल किया। इसके लिए अटलजी के पत्र की विवेचना अलग से दी जा रही है।इस प्रकरण को समझने के लिए यह जरूरी है कि आप मेरे द्वारा भेजी जा रही हर सामग्री का अध्ययन करें। मुझे उम्मीद है लोकसभा से पहले इससे बढ़िया समाचार मिल पाना संभव नहीं हो पाएगा।
धन्यवाद
भवदीय
जोनाथन लाल
संपर्क: +919351732994 +919907320988


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अटलजी को भेजे गए पत्र की विवेचना
13 का आंकड़ाइंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद हुए चुनाव में जब अटलजी स्वयं ग्वालियर से चुनाव हार गए थे, तब भाजपा अध्यक्ष होने के नाते कुलदीप ने अटलजी को एक लंवा विश्लेषणात्मक पत्र लिखा था, जिसमें उन कारणों को गिनाया गया था, जिसकी बदौलत पार्टी को केवल दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। लोगों के जेहन में यह बात अवश्य आएगी कि क्यों कुलदीप इस बात को महत्व देते हैं कि उनकी वजह से ही अटलजी प्रधानमंत्री बने? ऐसे न जाने कितने पत्र उन्हें मिलते होंगे? तो इसकी तारीख पर गौर किया जाना सबसे जरूरी है, क्योंकि 19 मार्च 1985 को कुलदीप द्वारा अजमेर से लिखे गए पत्र के ठीक 13 साल बाद यानी 19 मार्च 1998 को अटलजी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। यह वह शपथ थी, जिसके बाद 13 महीने तक उन्होंने शासन किया, क्योंकि 1996 में तो वे केवल 13 दिन ही प्रधानमंत्री रह पाए थे।
गांधीवादी समाजवाद की जगह आया राम मंदिर का मुद्दाकुलदीप द्वारा अटलजी को भेजे गए इस पत्र में यह तो हुई 13 के आंकड़े की बात। अब आती है मुद्दों की बात तो सबसे बड़ा मुद्दा तो यही है कि इस पत्र के बाद से अपनी हिन्दूवादी छवि को बनाने के लिए राम मंदिर का मुद्दा उठाया गया, अन्यथा अटलजी तो इसे गांधीवादी समाजवाद की ओर ले जाने को तत्पर थे। (वर्ष 1985 के राजस्थान के सीकर में हुए पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन के समाचारों से इसकी तस्दीक की जा सकती है।)इस पत्र से पहले तक छद्म धर्मनिरपेक्षता जैसी कोई बात थी ही नहींकुलदीप के पत्र का जवाब देते हुए अटलजी ने अपने पत्र में कहा कि जहां तक सेक्यूलर होने का सवाल है, जनसंघ और भाजपा की नीतियों में कोई अंतर नहीं है। इस समय तक भाजपा के शब्दकोश में छद्म धर्मनिरपेक्षता जैसा कोई शब्द था ही नहीं,। अपने पत्र के माध्यम से कुलदीप ने जब इस बाबद सवाल किया तो ही छद्म धर्मनिरपेक्षता उपजा और आक्रामक रूप से कांग्रेस पर हमला बोला गया।एकता यात्रा का परिणाम भी रहा यह पत्रइस पत्र के लिखे जाने से पहले तक कश्मीर के लिए बनाई गई धारा 370 के बारे में लोगों में जागरूकता का अभाव था। हर आम और खास को इसकी जानकारी हो सके इसके लिए ही मुरलीमनोहर जोशी ने एकता यात्रा की पहल की थी।शुरुआत के 6-7 साल तक अन्य दलों से तालमेल से किया परहेजकुलदीप द्वारा पत्र लिखे जाने के बाद हुए चुनावों में अन्य दलों से तालमेल करने से परहेज किया गया। यह सिलसिला केवल 6-7 साल तक कायम रहा, लेकिन बाद में इसे छोड़ दिया गया।इस पत्र के बाद जरूरत होने पर भी नहीं बने अध्यक्ष अटलजीकुलदीप ने अपने इस पत्र में यह प्रश्न भी उठाया था कि चाहे जनसंघ हो या भाजपा कांग्रेस की तरह ही इसमें अध्यक्ष गांधी परिवार की तरह हमेशा अटलबिहारी वाजपेयी होते हैं। कुलदीप के इस सवाल से तिलमिलाए अटलजी ने यहां तक लिख दिया कि कुलदीप मानसिक विकृति का शिकार है, लेकिन जाहिरा तौर पर इसके बाद अटलजी ने कभी भाजपा का अध्यक्ष पद स्वीकारना मुनासिब नहीं समझा। यदि 1996 में लालकृण आडवाणी की जगह भाजपा के अध्यक्ष अटलजी होते तो हो सकता है कि भाजपा को तभी पूर्ण बहुमत मिल गया होता।तीन पेज का छोटा सा उत्तरकुलदीप को भेजे गए जवाब के आखिरी पैराग्राफ में अटलजी लिखते हैं कि आपके लंबे पत्र का छोटा सा उत्तर भेज रहा हूं। उनके द्वारा लिखे गए इस वाक्यांश से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कुलदीप ने कितना लंबा पत्र उन्हें लिखा था, जिसमें वे तमाम बातें थीं जिनकी बदौलत भाजपा की 1985 के चुनाव में ऐसी दुर्दशा हुई थी।

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नईदुनिया के पत्रकार ने मांगी राष्ट्रपति से सपरिवार इच्छामृत्यु की इजाजतइंदौर से प्रकाशित मध्यप्रदेश के भाषाई समाचार पत्र नईदुनिया के अभय छजलानी और प्रधान संपादक आलोक मेहता को इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर पद्मश्री से सम्मानित किए जाने के परिप्रेक्ष्य में यह जान लेना कम दिलचस्प नहीं होगा कि संस्था में कर्मचारियों का कॅरियर किस प्रकार तक चैपट कर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। संस्था ने एक कर्मचारी को इतना परेशान किया कि उसने मजबूर होकर राष्ट्रपति से सपरिवार इच्छामृत्यु की इजाजत मांगी। राष्ट्रपति को की गई शिकायत में इसने अपने सारे दुखों का बयान कर उनसे सपरिवार इच्छामृत्यु चाही थी,, लेकिन इसकी यह शिकायत देश में मौजूद लालफीताशाही में उलझ कर रह गई और हाल-फिलहाल तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई, लेकिन संस्था प्रमुखों को पद्मश्री से नवाजा गया है, क्या यही लोकतंत्र है?स्थानांतर के करीब एक साल बाद इस कर्मचारी ने यूनियन की तरफ से श्रम आयुक्त को बताया कि उसका स्थानांतर दुर्भावना से प्रेरित होकर किया गया है। श्रम आयुक्त ने इस मामले को 21/06/07 को श्रम न्यायालय को सुपुर्द कर दिया, लेकिन नईदुनिया प्रबंधन अपनी पहुंच और धन का इस्तेमाल करते हुए पेशी दर पेशी तारीखें आगे बढ़ा रहा है. नईदुनिया प्रबंधन की हमेशा से नीति रही थी कि जिस भी कर्मी को नौकरी से निकालना हो, उसके सामने ऐसे हालात पैदा कर दो कि वह खुद ब खुद ही नौकरी छोड़ दे, लेकिन इस कर्मी के मामले में प्रबंधन गच्चा खा गया। आर्थिक तंगी से जूझ रहे इस कर्मी ने बीमार पिता का समुचित इलाज न करा पाने और कोई दूसरी राह नहीं सूझने पर राष्ट्रपति से सपरिवार इच्छामृत्यु की इजाजत मांग थी। आर्थिक मंदी और बेलगाम महंगाई के इस दौर में बिना किसी रोजगार के अब इस कर्मचारी के सामने अपने जीवन का निर्वाह ही अहम सवाल बना हुआ है। इस कर्मचारी द्वारा राष्ट्रपति को भेजा गया सपरिवार इच्छामृत्यु संबंधी पत्र ज्यों का त्यों इस प्रकार है:-
सेवा में,महामहिम राष्ट्रपतिश्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल महोदया,राष्टपति भवन,नई दिल्लीविषय: सपरिवार इच्छामृत्यु की अनुमति देने बाबद।
महामहिम महोदया,प्रार्थी कुलदीप शर्मा मध्यप्रदेश के भाषाई समाचार पत्र 'नईदुनिया' में वर्ष 1996 से कार्यरत है। नईदुनिया प्रबंधन ने दुर्भावना से प्रेरित होकर (यह जानते-बूझते कि मैं पारिवारिक कारणों से इंदौर से बाहर जाकर काम नहीं कर सकता हूं), मेरा स्थानांतर 7 नवंबर 05 को भोपाल कर दिया। स्थानांतर से संबंधित मेरा प्रकरण श्रम न्यायालय में गत वर्ष (प्रकरण क्रमांक 57/07 दिनांक 9/10/07 को) जवाबदावा देकर समाचार प़्ात्र कर्मचारी यूनियन इंदौर ने प्रस्तुत कर दिया लेकिन मुझे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के उद्देश्य से नईदुनिया प्रबंधन द्वारा अभी तक श्रम न्यायालय में इसका जवाब ही पेश नहीं किया गया है।लोकतंत्र का चैथा स्तंभ होने का नाजायज फायदानईदुनिया प्रबंधन द्वारा अनेक प्रकार से लोकतंत्र का चैथा स्तंभ होने का नाजायज फायदा गलतबयानी को आधार बनाकर लिया जा रहा है। प्रबंधन द्वारा गलतबयानी को अपना हथियार बनाने की पहली मिसाल मेरे द्वारा सहायक श्रमायुक्त को 31 अगस्त 2006 को की गई शिकायत पर नईदुनिया प्रबंधन द्वारा दिया गया जवाब है। इसमें ( प्रबंधन द्वारा दिए गए जवाबी पत्र के) शुरुआती पैरा में लिखा गया है कि इनका कार्य संतोषजनक नहीं रहा। इनके काम के बारे में ढेरों गलतियां/ शिकायतें आने लगीं...आदि।सहायत श्रमायुक्त को संबोधित 2 अक्टूबर 06 के इसी पत्र के दूसरे पेज के अंत में (कंडिका 7 का जवाब देते हुए) प्रबंधन द्वारा लिखा गया है- जिनका नाम प्रार्थी ने लिखा है उनकी योग्यता व क्षमता शिकायतकर्ता की योग्यता व क्षमता के आगे नगण्य है। यह है नईदुनिया की गलतबयानी की पहली मिसाल जिसके अनुसार पिछले 40-45 वर्षों से यहां काम करने वालों की योग्यता व क्षमता मेरे मुकाबले नगण्य है। कहने का सीधा और आसान मतलब यह है कि मुझसे पहले के सभी कर्मी अयोग्य हैं (प्रति संलग्न है)।गलतबयानी की दूसरी मिसालनईदुनिया प्रबंधन द्वारा गलतबयानी की दूसरी मिसाल है क्षेत्रीय भविष्यनिधि आयुक्त के समक्ष दिया गया यह कथन है कि मुझे 15/02/96 को बतौर अपें्रटिस रखा गया था। क्षेत्रीय भविष्यनिधि आयुक्त (ईआर) द्वारा प्रबंधन को जब अप्रेंटिस एक्ट 1961 के तहत स्टेंडिंग आॅर्डर की प्रति देने को कहा गया तो प्रबंधन द्वारा इसकी प्रति पेष नहीं की गई ( भविष्यनिधि आयुक्त के फैसले की प्रति संलग्न)।मौके-बेमौके नईदुनिया प्रबंधन की इस तरह गलतबयानी से जाहिर है कि उसने परेशान, प्रताड़ित औश्र रोजी-रोटी से मोहताज करने के लिए जान-बूझकर मुझे ही स्थानांतर के लिए इसलिए चुना ताकि अपने पारिवारिक कारणों से मैं इंदौर शहर से बाहर नहीं जा सकूं और प्रबंधन की मंशानुरूप स्वेच्छा से त्यागपत्र दे दूं। नईदुनिया प्रबंधन पिछले लंबे समय से मुझ पर त्यागपत्र देने के लिए दबाव बनाए हुए था। 26 नवंबर 03 से 28 दिसंबर 03 की अवधि के दौरान भी मुझे जबरन काम करने से रोका गया था।
प्रबंधन ने कानून की जानकारी का फायदा उठायासारे प्रयासों के बावजूद मेरे त्यागपत्र नहीं देने पर नईदुनिया प्रबंधन ने कानून की इस जानकारी के आधार पर कि न्यायालय में स्थानांतर का केस यूनियन के माध्यम से ही लड़ा जा सकता है, मुझे स्थानांतर के लिए इसलिए भी चुन लिया क्योंकि मैं किसी यूनियन का सदस्य नहीं रहा था। यूनियन का सदस्य नहीं होने के कारण ही नवंबर 05 में स्थानांतरण होने के करीब 10 माह बाद (31 अगस्त 06 को) मैंने अपनी ओर से सहायक श्रमायुक्त कार्यालय में पहली औपचारिक षिकायत की थी।पनपने नहीं दी यूनियननईदुनिया प्रबंधन ने लोकतंत्र का चैथा स्तंभ होन का इस्तेमाल कर पिछले 60 वर्षों में इतनी बड़ी संस्था में लोगों के कार्यरत होने के बावजूद संस्था में किसी यूनियन को इसलिए नहीं पनपने दिया ताकि वह अपनी मर्जी से 'किसे नौकरी पर रखना है और किसे बाहर करना है' का तानाशाहीपूर्ण रुख अख्तियार करना जारी रख सके।आपसे सपरिवार इच्छामृत्यु चाहने का कारण1. मेरी उम्र 46 वर्ष से अधिक हो जाने के कारण अब किसी अन्य संस्था द्वारा नौकरी दिया जाना संभव नहीं। उम्र के इस पड़ाव पर आकर कोई और या नई तरह की नौकरी अथवा धंधा कर पाना मुमकिन नहीं। इस कारण मैं नवंबर 05 से अभी तक मार्च 2008 (करीब 28 माह) तक बेरोजगार हूं।2. इकलौते बेटे के बेरोजगार होने के सदमें से पिताजी सितंबर 06 से बिस्तर पर चले गए हैं। वे चलना-फिरना तो दूर उठने-बैठने से भी मोहताज हैं।3. बिस्तर पर लगातार एक ही मुद्रा में लेटे रहने से उनकी पीठ, कूल्हे और पांव में शैयावृण (बेडसोर) हो गए हैं।4. पुत्र होने के नाते मेरा दायित्व है कि मैं उन्हें इस तकलीफ से छुटकारा दिलाउं् (हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में यह व्यवस्था दी है कि माता-पिता की सेवा पुत्र का दायित्व है) लेकिन अंशदान जमा नहीं होने से राज्य बीमा चिकित्सा सुविधा मिलना बंद है।5. आय का अन्य कोई स्रोत नहीं होने और पिछले 18 माह से पिताजी के इलाज में पैसा खर्च होने से सारी जमापूंजी समाप्त हो गई है।6. एक तरफ नईदुनिया जैसी बड़ी संस्था और उसके आर्थिक रूप से सुदृढ़ होने से वह अपनी पहुंच और पैसे के दम पर मुकदमे को लंबे समय तक खींच सकने में सक्षम है। इसका उदाहरण पिछले करीब 6 माह से श्रम न्यायालय में पेश जवाबदावे का जवाब ही नहीं दिया जाना है तो दूसरी तरफ महंगाई के लगातार बढ़ते जाने के साथ मौजूदा हालत में परिवार का गुजारा अहम प्रश्न है। परिवार को रोज तिल-तिलकर मारने से बेहतर है मृत्यु का वरण करना।
इन सब हालात के चलते मैं अपने पूरे होशो-हवास में आपसे सपरिवार इच्छामृत्यु की अनुमति देने की प्रार्थना करता हूं।महामहिम महोदया आपसे निवेदन है कि शीघ्र ही इस प्रार्थना को स्वीकार कर हमें इच्छामृत्यु की अनुमति देने की कृपा करें।धन्यवाद प्रार्थी(कुलदीप शर्मा)
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Sunday, March 1, 2009

जोनाथन लाल ब्लॉग .कॉम

कुलदीप शर्मा नामक इस पत्रकार का दोष सिर्फ इतना ही रहा कि यह अखबार की कांग्रेस विचारधारा केे विपरीत भाजपा की विचारधारा से प्रभावित रहा था और चर्चा के दौरान इसका उल्लेख गलती से अखबार के प्रधान संपादक के सामने कर दिया। बस फिर क्या था, येनकेन प्र्रकारेण इसे निकाले जाने का दबाव बनाया जाने लगा और त्यागपत्र दे देने की सलाह दी जाने लगी। जब इस शख्स ने अपनी परेशानियों से अवगत कराया तो उसका स्थानांतर कर दिया गया। इसका पूरा विवरण कुलदीप द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए पत्र में है।यहां यह बताना गैरजरूरी नहीं होगा कि इस शख्स ने महज 24 साल की उम्र में वर्ष 1985 में इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की करारी शिकस्त के बाद तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अटलबिहारी वाजपेयी को पार्टी की ऐसी दुर्गति होने के विभिन्न कारण गिनाते हुए 19 मार्च 1985 को एक लंबा पत्र लिखा, जिसके बाद ही पार्टी ने गांधीवादी समाजवाद के अपने सिद्धांत से किनारा कर राम मंदिर का मुद्दा अपने एजेंडे में शामिल किया। इसके लिए अटलजी के पत्र की विवेचना अलग से दी जा रही है।इस प्रकरण को समझने के लिए यह जरूरी है कि आप मेरे द्वारा भेजी जा रही हर सामग्री का अध्ययन करें। मुझे उम्मीद है लोकसभा से पहले इससे बढ़िया समाचार मिल पाना संभव नहीं हो पाएगा।
धन्यवाद
भवदीय
जोनाथन लाल
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अटलजी को भेजे गए पत्र की विवेचना
13 का आंकड़ाइंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद हुए चुनाव में जब अटलजी स्वयं ग्वालियर से चुनाव हार गए थे, तब भाजपा अध्यक्ष होने के नाते कुलदीप ने अटलजी को एक लंवा विश्लेषणात्मक पत्र लिखा था, जिसमें उन कारणों को गिनाया गया था, जिसकी बदौलत पार्टी को केवल दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। लोगों के जेहन में यह बात अवश्य आएगी कि क्यों कुलदीप इस बात को महत्व देते हैं कि उनकी वजह से ही अटलजी प्रधानमंत्री बने? ऐसे न जाने कितने पत्र उन्हें मिलते होंगे? तो इसकी तारीख पर गौर किया जाना सबसे जरूरी है, क्योंकि 19 मार्च 1985 को कुलदीप द्वारा अजमेर से लिखे गए पत्र के ठीक 13 साल बाद यानी 19 मार्च 1998 को अटलजी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। यह वह शपथ थी, जिसके बाद 13 महीने तक उन्होंने शासन किया, क्योंकि 1996 में तो वे केवल 13 दिन ही प्रधानमंत्री रह पाए थे।
गांधीवादी समाजवाद की जगह आया राम मंदिर का मुद्दाकुलदीप द्वारा अटलजी को भेजे गए इस पत्र में यह तो हुई 13 के आंकड़े की बात। अब आती है मुद्दों की बात तो सबसे बड़ा मुद्दा तो यही है कि इस पत्र के बाद से अपनी हिन्दूवादी छवि को बनाने के लिए राम मंदिर का मुद्दा उठाया गया, अन्यथा अटलजी तो इसे गांधीवादी समाजवाद की ओर ले जाने को तत्पर थे। (वर्ष 1985 के राजस्थान के सीकर में हुए पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन के समाचारों से इसकी तस्दीक की जा सकती है।)इस पत्र से पहले तक छद्म धर्मनिरपेक्षता जैसी कोई बात थी ही नहींकुलदीप के पत्र का जवाब देते हुए अटलजी ने अपने पत्र में कहा कि जहां तक सेक्यूलर होने का सवाल है, जनसंघ और भाजपा की नीतियों में कोई अंतर नहीं है। इस समय तक भाजपा के शब्दकोश में छद्म धर्मनिरपेक्षता जैसा कोई शब्द था ही नहीं,। अपने पत्र के माध्यम से कुलदीप ने जब इस बाबद सवाल किया तो ही छद्म धर्मनिरपेक्षता उपजा और आक्रामक रूप से कांग्रेस पर हमला बोला गया।एकता यात्रा का परिणाम भी रहा यह पत्रइस पत्र के लिखे जाने से पहले तक कश्मीर के लिए बनाई गई धारा 370 के बारे में लोगों में जागरूकता का अभाव था। हर आम और खास को इसकी जानकारी हो सके इसके लिए ही मुरलीमनोहर जोशी ने एकता यात्रा की पहल की थी।शुरुआत के 6-7 साल तक अन्य दलों से तालमेल से किया परहेजकुलदीप द्वारा पत्र लिखे जाने के बाद हुए चुनावों में अन्य दलों से तालमेल करने से परहेज किया गया। यह सिलसिला केवल 6-7 साल तक कायम रहा, लेकिन बाद में इसे छोड़ दिया गया।इस पत्र के बाद जरूरत होने पर भी नहीं बने अध्यक्ष अटलजीकुलदीप ने अपने इस पत्र में यह प्रश्न भी उठाया था कि चाहे जनसंघ हो या भाजपा कांग्रेस की तरह ही इसमें अध्यक्ष गांधी परिवार की तरह हमेशा अटलबिहारी वाजपेयी होते हैं। कुलदीप के इस सवाल से तिलमिलाए अटलजी ने यहां तक लिख दिया कि कुलदीप मानसिक विकृति का शिकार है, लेकिन जाहिरा तौर पर इसके बाद अटलजी ने कभी भाजपा का अध्यक्ष पद स्वीकारना मुनासिब नहीं समझा। यदि 1996 में लालकृण आडवाणी की जगह भाजपा के अध्यक्ष अटलजी होते तो हो सकता है कि भाजपा को तभी पूर्ण बहुमत मिल गया होता।तीन पेज का छोटा सा उत्तरकुलदीप को भेजे गए जवाब के आखिरी पैराग्राफ में अटलजी लिखते हैं कि आपके लंबे पत्र का छोटा सा उत्तर भेज रहा हूं। उनके द्वारा लिखे गए इस वाक्यांश से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कुलदीप ने कितना लंबा पत्र उन्हें लिखा था, जिसमें वे तमाम बातें थीं जिनकी बदौलत भाजपा की 1985 के चुनाव में ऐसी दुर्दशा हुई थी।

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नईदुनिया के पत्रकार ने मांगी राष्ट्रपति से सपरिवार इच्छामृत्यु की इजाजतइंदौर से प्रकाशित मध्यप्रदेश के भाषाई समाचार पत्र नईदुनिया के अभय छजलानी और प्रधान संपादक आलोक मेहता को इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर पद्मश्री से सम्मानित किए जाने के परिप्रेक्ष्य में यह जान लेना कम दिलचस्प नहीं होगा कि संस्था में कर्मचारियों का कॅरियर किस प्रकार तक चैपट कर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। संस्था ने एक कर्मचारी को इतना परेशान किया कि उसने मजबूर होकर राष्ट्रपति से सपरिवार इच्छामृत्यु की इजाजत मांगी। राष्ट्रपति को की गई शिकायत में इसने अपने सारे दुखों का बयान कर उनसे सपरिवार इच्छामृत्यु चाही थी,, लेकिन इसकी यह शिकायत देश में मौजूद लालफीताशाही में उलझ कर रह गई और हाल-फिलहाल तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई, लेकिन संस्था प्रमुखों को पद्मश्री से नवाजा गया है, क्या यही लोकतंत्र है?स्थानांतर के करीब एक साल बाद इस कर्मचारी ने यूनियन की तरफ से श्रम आयुक्त को बताया कि उसका स्थानांतर दुर्भावना से प्रेरित होकर किया गया है। श्रम आयुक्त ने इस मामले को 21/06/07 को श्रम न्यायालय को सुपुर्द कर दिया, लेकिन नईदुनिया प्रबंधन अपनी पहुंच और धन का इस्तेमाल करते हुए पेशी दर पेशी तारीखें आगे बढ़ा रहा है. नईदुनिया प्रबंधन की हमेशा से नीति रही थी कि जिस भी कर्मी को नौकरी से निकालना हो, उसके सामने ऐसे हालात पैदा कर दो कि वह खुद ब खुद ही नौकरी छोड़ दे, लेकिन इस कर्मी के मामले में प्रबंधन गच्चा खा गया। आर्थिक तंगी से जूझ रहे इस कर्मी ने बीमार पिता का समुचित इलाज न करा पाने और कोई दूसरी राह नहीं सूझने पर राष्ट्रपति से सपरिवार इच्छामृत्यु की इजाजत मांग थी। आर्थिक मंदी और बेलगाम महंगाई के इस दौर में बिना किसी रोजगार के अब इस कर्मचारी के सामने अपने जीवन का निर्वाह ही अहम सवाल बना हुआ है। इस कर्मचारी द्वारा राष्ट्रपति को भेजा गया सपरिवार इच्छामृत्यु संबंधी पत्र ज्यों का त्यों इस प्रकार है:-
सेवा में,महामहिम राष्ट्रपतिश्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल महोदया,राष्टपति भवन,नई दिल्लीविषय: सपरिवार इच्छामृत्यु की अनुमति देने बाबद।
महामहिम महोदया,प्रार्थी कुलदीप शर्मा मध्यप्रदेश के भाषाई समाचार पत्र 'नईदुनिया' में वर्ष 1996 से कार्यरत है। नईदुनिया प्रबंधन ने दुर्भावना से प्रेरित होकर (यह जानते-बूझते कि मैं पारिवारिक कारणों से इंदौर से बाहर जाकर काम नहीं कर सकता हूं), मेरा स्थानांतर 7 नवंबर 05 को भोपाल कर दिया। स्थानांतर से संबंधित मेरा प्रकरण श्रम न्यायालय में गत वर्ष (प्रकरण क्रमांक 57/07 दिनांक 9/10/07 को) जवाबदावा देकर समाचार प़्ात्र कर्मचारी यूनियन इंदौर ने प्रस्तुत कर दिया लेकिन मुझे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के उद्देश्य से नईदुनिया प्रबंधन द्वारा अभी तक श्रम न्यायालय में इसका जवाब ही पेश नहीं किया गया है।लोकतंत्र का चैथा स्तंभ होने का नाजायज फायदानईदुनिया प्रबंधन द्वारा अनेक प्रकार से लोकतंत्र का चैथा स्तंभ होने का नाजायज फायदा गलतबयानी को आधार बनाकर लिया जा रहा है। प्रबंधन द्वारा गलतबयानी को अपना हथियार बनाने की पहली मिसाल मेरे द्वारा सहायक श्रमायुक्त को 31 अगस्त 2006 को की गई शिकायत पर नईदुनिया प्रबंधन द्वारा दिया गया जवाब है। इसमें ( प्रबंधन द्वारा दिए गए जवाबी पत्र के) शुरुआती पैरा में लिखा गया है कि इनका कार्य संतोषजनक नहीं रहा। इनके काम के बारे में ढेरों गलतियां/ शिकायतें आने लगीं...आदि।सहायत श्रमायुक्त को संबोधित 2 अक्टूबर 06 के इसी पत्र के दूसरे पेज के अंत में (कंडिका 7 का जवाब देते हुए) प्रबंधन द्वारा लिखा गया है- जिनका नाम प्रार्थी ने लिखा है उनकी योग्यता व क्षमता शिकायतकर्ता की योग्यता व क्षमता के आगे नगण्य है। यह है नईदुनिया की गलतबयानी की पहली मिसाल जिसके अनुसार पिछले 40-45 वर्षों से यहां काम करने वालों की योग्यता व क्षमता मेरे मुकाबले नगण्य है। कहने का सीधा और आसान मतलब यह है कि मुझसे पहले के सभी कर्मी अयोग्य हैं (प्रति संलग्न है)।गलतबयानी की दूसरी मिसालनईदुनिया प्रबंधन द्वारा गलतबयानी की दूसरी मिसाल है क्षेत्रीय भविष्यनिधि आयुक्त के समक्ष दिया गया यह कथन है कि मुझे 15/02/96 को बतौर अपें्रटिस रखा गया था। क्षेत्रीय भविष्यनिधि आयुक्त (ईआर) द्वारा प्रबंधन को जब अप्रेंटिस एक्ट 1961 के तहत स्टेंडिंग आॅर्डर की प्रति देने को कहा गया तो प्रबंधन द्वारा इसकी प्रति पेष नहीं की गई ( भविष्यनिधि आयुक्त के फैसले की प्रति संलग्न)।मौके-बेमौके नईदुनिया प्रबंधन की इस तरह गलतबयानी से जाहिर है कि उसने परेशान, प्रताड़ित औश्र रोजी-रोटी से मोहताज करने के लिए जान-बूझकर मुझे ही स्थानांतर के लिए इसलिए चुना ताकि अपने पारिवारिक कारणों से मैं इंदौर शहर से बाहर नहीं जा सकूं और प्रबंधन की मंशानुरूप स्वेच्छा से त्यागपत्र दे दूं। नईदुनिया प्रबंधन पिछले लंबे समय से मुझ पर त्यागपत्र देने के लिए दबाव बनाए हुए था। 26 नवंबर 03 से 28 दिसंबर 03 की अवधि के दौरान भी मुझे जबरन काम करने से रोका गया था।
प्रबंधन ने कानून की जानकारी का फायदा उठायासारे प्रयासों के बावजूद मेरे त्यागपत्र नहीं देने पर नईदुनिया प्रबंधन ने कानून की इस जानकारी के आधार पर कि न्यायालय में स्थानांतर का केस यूनियन के माध्यम से ही लड़ा जा सकता है, मुझे स्थानांतर के लिए इसलिए भी चुन लिया क्योंकि मैं किसी यूनियन का सदस्य नहीं रहा था। यूनियन का सदस्य नहीं होने के कारण ही नवंबर 05 में स्थानांतरण होने के करीब 10 माह बाद (31 अगस्त 06 को) मैंने अपनी ओर से सहायक श्रमायुक्त कार्यालय में पहली औपचारिक षिकायत की थी।पनपने नहीं दी यूनियननईदुनिया प्रबंधन ने लोकतंत्र का चैथा स्तंभ होन का इस्तेमाल कर पिछले 60 वर्षों में इतनी बड़ी संस्था में लोगों के कार्यरत होने के बावजूद संस्था में किसी यूनियन को इसलिए नहीं पनपने दिया ताकि वह अपनी मर्जी से 'किसे नौकरी पर रखना है और किसे बाहर करना है' का तानाशाहीपूर्ण रुख अख्तियार करना जारी रख सके।आपसे सपरिवार इच्छामृत्यु चाहने का कारण1. मेरी उम्र 46 वर्ष से अधिक हो जाने के कारण अब किसी अन्य संस्था द्वारा नौकरी दिया जाना संभव नहीं। उम्र के इस पड़ाव पर आकर कोई और या नई तरह की नौकरी अथवा धंधा कर पाना मुमकिन नहीं। इस कारण मैं नवंबर 05 से अभी तक मार्च 2008 (करीब 28 माह) तक बेरोजगार हूं।2. इकलौते बेटे के बेरोजगार होने के सदमें से पिताजी सितंबर 06 से बिस्तर पर चले गए हैं। वे चलना-फिरना तो दूर उठने-बैठने से भी मोहताज हैं।3. बिस्तर पर लगातार एक ही मुद्रा में लेटे रहने से उनकी पीठ, कूल्हे और पांव में शैयावृण (बेडसोर) हो गए हैं।4. पुत्र होने के नाते मेरा दायित्व है कि मैं उन्हें इस तकलीफ से छुटकारा दिलाउं् (हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में यह व्यवस्था दी है कि माता-पिता की सेवा पुत्र का दायित्व है) लेकिन अंशदान जमा नहीं होने से राज्य बीमा चिकित्सा सुविधा मिलना बंद है।5. आय का अन्य कोई स्रोत नहीं होने और पिछले 18 माह से पिताजी के इलाज में पैसा खर्च होने से सारी जमापूंजी समाप्त हो गई है।6. एक तरफ नईदुनिया जैसी बड़ी संस्था और उसके आर्थिक रूप से सुदृढ़ होने से वह अपनी पहुंच और पैसे के दम पर मुकदमे को लंबे समय तक खींच सकने में सक्षम है। इसका उदाहरण पिछले करीब 6 माह से श्रम न्यायालय में पेश जवाबदावे का जवाब ही नहीं दिया जाना है तो दूसरी तरफ महंगाई के लगातार बढ़ते जाने के साथ मौजूदा हालत में परिवार का गुजारा अहम प्रश्न है। परिवार को रोज तिल-तिलकर मारने से बेहतर है मृत्यु का वरण करना।
इन सब हालात के चलते मैं अपने पूरे होशो-हवास में आपसे सपरिवार इच्छामृत्यु की अनुमति देने की प्रार्थना करता हूं।महामहिम महोदया आपसे निवेदन है कि शीघ्र ही इस प्रार्थना को स्वीकार कर हमें इच्छामृत्यु की अनुमति देने की कृपा करें।

धन्यवाद

प्रार्थी

(कुलदीप शर्मा)

कुलदीप से संपर्क के लिए

०९४२४५०५१३६


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Monday, February 9, 2009

पद्मश्री अवाॅर्ड की बंदरबांट

पद्मश्री अवाॅर्ड की बंदरबांट
गणतंत्र दिवस पर इस बार बांटे गए पद्मश्री अवाॅर्डों को लेकर इस बार जैसी फजीहत सरकार को कभी भी नहीं करनी पड़ी। ओलंपिक में देश को पहली बार पदकों की तालिका में पहुंचाने के बावजूद मुक्केबाज सुशील कुमार और वीरेंदरसिंह को महरूम रहना पड़ा, वहीं जम्मू कश्मीर के निर्यातक को पद्मश्री अवाॅर्ड के लिए नामित कर दिया जाने से यही लगता है कि यदि जोड़-तोड़ की जाए तो यह अवाॅर्ड पाना भी अब कोई मुश्किल काम नहीं रह गया है।
इससे भी दिलचस्प बात यह है कि इस वर्ष मध्यप्रदेश के भाषाई समाचार पत्र नईदुनिया के मालिक और प्रधान संपादक रहे अभय छजलानी और इसी संस्था के वर्तमान प्रधान संपादक का काम देख रहे आलोक मेहता तक को पद्मश्री अवाॅर्ड से नवाजा गया है। दिलचस्प बात यह है कि इसी संस्था के एक पत्रकार ने गत वर्ष वर्तमान राष्ट्रपति महोदया श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल से इस संस्था द्वारा उसे परेशान किए जाने से त्रस्त होकर सपरिवार इच्छामृत्यु की याचना की थी, जिस पर संभवतः अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है, उल्टे पूर्व और वर्तमान संस्था प्रमुखों को पद्मश्री अवाॅर्ड से नवाज दिया गया है।